इस नसल का प्रयोग मुख्यत: मीट उत्पादन के लिए किया जाता है। यह पंजाब, राजस्थान, आगरा और यू पी के कुछ जिलों में पायी जाती है। यह मध्यम कद का जानवर है जिसका शरीर सघन होता है। इसके कान छोटे और चपटे होते हैं। नर बकरी का भार 38-40 किलो और मादा बकरी का भार 23-25 किलो होता है। नर बकरी की लंबाई 65 सैं.मी. और मादा बकरी की लंबाई लगभग 75 सैं.मी. होती है। यह व्यापक रंगों में होती है लेकिन शरीर पर सफेद रंग के साथ छोटे हल्के भूरे रंग के धब्बों वाली नसल बहुत सामान्य है। नर और मादा बारबरी बकरी दोनों की ही बड़ी मोटी दाढ़ी होती है। प्रतिदिन दूध की औसतन पैदावार 1.5-2.0 किलो और प्रति ब्यांत में 140 किलो दूध की उपज होती है।
चारा
ये जानवर जिज्ञासु प्रकृति के होने के कारण विभिन्न प्रकार के भोजन, जो कड़वे, मीठे, नमकीन और स्वाद में खट्टे होते हैं, खा सकते हैं। ये स्वाद और आनंद के साथ फलीदार भोजन जैसे लोबिया, बरसीम, लहसुन आदि खाते हैं। मुख्य रूप से ये चारा खाना पसंद करते हैं जो उन्हें ऊर्जा और उच्च प्रोटीन देता है। आमतौर पर इनका भोजन खराब हो जाता है क्योंकि ये भोजन के स्थान पर पेशाब कर देते हैं। इसलिए भोजन को नष्ट होने से बचाने के लिए विशेष प्रकार का भोजन स्थल बनाया जाता है।
फलीदार चारा: बरसीम, लहसुन, फलियां, मटर, ग्वार।
गैर फलीदार चारा: मक्की, जई।
वृक्षों के पत्ते: पीपल, आम, अशोका, नीम, बेरी और बरगद का पेड़।
पौधे और झाड़ियां, हर्बल और ऊपर चढ़ने वाले पौधे: गोखरू, खेजरी, करौंदा, बेरी आदि।
जड़ वाले पौधे (सब्जियां का अतिरिक्त बचा हुआ): शलगम, आलू, मूली, गाजर, चुकंदर, फूल गोभी और बंद गोभी।
घास: नेपियर घास, गिन्नी घास, दूब घास, अंजन घास, स्टाइलो घास।
सूखा चारा
तूड़ी: चने, अरहर और मूंगफली, संरक्षित किया चारा।
हेय: घास, फलीदार (चने) और गैर फलीदार पौधे (जई) ।
साइलेज: घास, फलीदार और गैर फलीदार पौधे ।
मिश्रित भोजन
अनाज : बाजरा, ज्वार, जई, मक्की, चने, गेहूं।
खेत और उदयोग के उप उत्पाद: नारियल बीज की खल, सरसों की खल, मूंगफली की खल, अलसी, शीशम, गेहूं का चूरा, चावलों का चूरा आदि।
पशु और समुद्री उत्पाद: पूरा और आंशिक सूखे दूध के उत्पाद, फिश मील, ब्लड मील।
उदयोगिक उप उत्पाद: जौं उदयोग के उप उत्पाद, सब्जियां और फल के उप उत्पाद।
फलियां : बबूल, बरगद, मटर आदि।
मेमने का खुराकी प्रबंध: मेमने को जन्म के पहले घंटे में खीस जरूर पिलायें। इससे उसकी रोगों से लड़ने की शक्ति बढ़ेगी। इसके अलावा खीस विटामिन ए, डी, खनिज पदार्थ जैसे कॉपर, आयरन, मैगनीज़ और मैगनीशियम आदि का अच्छा स्त्रोत होती है। एक मेमने को एक दिन में 400 मि.ली. दूध पिलाना चाहिए, जो कि पहले महीने की उम्र के साथ बढ़ता रहता है।
दूध देने वाली बकरियों की खुराक: एक साधारण बकरी एक दिन में 4.5 किलो हरा चारा खा सकती है। इस चारे में कम से कम 1 किलो सूखा चारा जैसे कि अरहर, मटर, चने की भूसी या फलीदार हेय भी होना चाहिए।
नस्ल की देख रेख
गाभिन बकरियों की देख रेख: बकरियों की अच्छी सेहत के लिए गाभिन बकरी के ब्याने के 6-8 सप्ताह पहले ही दूध निकालना बंद कर दें। ब्यांत वाली बकरियों को ब्याने से 15 दिन पहले साफ, खुले और कीटाणु रहित ब्याने वाले कमरे में रखें।
मेमनों की देख रेख: जन्म के तुरंत बाद साफ सुथरे और सूखे कपड़े से मेमने के शरीर और उसके नाक, मुंह, कान में से जाले साफ कर दें। नए जन्मे बच्चे के शरीर को तोलिये से अच्छे से मसलना चाहिए। यदि मेमना सांस ना ले रहा हो, तो पिछली टांगों से पकड़ कर सिर नीचे की ओर रखें इससे उसके श्वसन पथ को साफ करने में मदद मिलेगी। बकरी के लेवे को टिंचर आयोडीन से साफ करें और फिर बच्चे को जन्म के 30 मिनट के अंदर-अंदर पहली खीस पिलायें।
ब्याने के बाद बकरियों की देख रेख: ब्यांत वाले कमरों को ब्याने के तुरंत बाद साफ और कीटाणु रहित करें। बकरी का पिछला हिस्सा आयोडीन या नीम के पानी से साफ करें। बकरी को ब्याने के बाद गर्म पानी में शीरा या शक्कर मिलाकर पिलायें। उसके बाद गर्म चूरे का दलिया जिसमें थोड़ी सी अदरक, नमक, धातुओं का चूरा और शक्कर आदि मिले हों, खिलाना चाहिए।
मेमनों पर पहचान चिन्ह लगाने: पशुओं के उचित रिकॉर्ड रखने, उचित खुराक खिलाने, अच्छा पालन प्रबंध, बीमे के लिए और मलकीयत साबित करने के लिए उन्हें नंबर लगाकर पहचान देनी जरूरी है। यह मुख्यत: टैटूइंग, टैगिंग, वैक्स मार्किंग क्रियॉन, स्प्रे चॉक, रंग बिरंगी स्प्रे और पेंट ब्रांडिंग से किया जाता है।
बकरियों को सिफारिश किए गए टीकाकरण: क्लोस्ट्रीडायल बीमारी से बचाव के लिए बकरियों को सी डी टी या सी डी और टी टीका लगवाएं। जन्म के समय टैटनस का टीका लगवाना चाहिए। जब बच्चा 5-6 सप्ताह का हो जाए, तब उसकी रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने के लिए टीकाकरण करवाना चाहिए और उसके बाद वर्ष में एक बार टीका लगवाएं।